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मुहावरे……… एक कविता

hindi kavita........ (Meri kuch pasandeeda kavitaayein)
hindi kavita........ (Meri kuch pasandeeda kavitaayein)
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बेकार चीज़ फेंक देना होता है सही…
ऐसा सुनते आए अब तक…

पर जब शब्द अर्थ खोने लगें तो क्या करें …
ज़ाहिर है फेंक दो उन्हें अंधी खाई में…

ऐसे कुछ शब्दों से बने मुहावरे खो चुके हैं अर्थ…
पर कुछ लकीर के फकीर करते हैं उनका उपयोग गाहे-बगाहे…
उदाहरणार्थ वो कहते हैं
झूठ के पाँव नहीं होते…
पर अक़्सर नज़र आते हैं कई झूठ, कई तरह की दौड़ों में अव्वल आते हुए..
सांच को आंच नहीं…
पर सच जला-बुझा सा कोने में पड़ा मिलता है अदालतों में…
भगवान के घर देर है…अंधेर नहीं..
पर भगवान ख़ुद अमीरों की इमारतों में उजाला करने में है व्यस्त
सौ सुनार की, एक लोहार की…
पर आज के बाज़ार ने लोहार को गायब कर दिया बाज़ार से…
न नौ मन तेल होगा…न राधा नाचेगी..
पर राधा मीरा नाच रहीं चवन्नी-अठन्नी पर किसी सस्ते बार में…
चैन की नींद सोना…
पर मेरे बूढ़े पिता रिटायर होने के बाद जागते हैं उल्लुओं की तरह…
अनिष्ट की आशंका में…
ये मुहावरे मिटा डालो
फाड़ो वो पन्ने जो इनका बोझ ढो के बोझिल हो चुके..
निष्कासित करो उन लकीर के फकीरों को..
जो इनके सच होने की उम्मीद लगाए बैठे हैं……..

(अश्विनी)

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