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गिद्ध एक कविता ..

hindi kavita........ (Meri kuch pasandeeda kavitaayein)
hindi kavita........ (Meri kuch pasandeeda kavitaayein)
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प्रशांत वस्ल जी इस समय एक कानूनी लडाई लड़ने में व्यस्त हैं- जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ हुए अन्याय पर आवाज़ उठायी है | उन्हें न्याय मिलता नज़र नहीं आ रहा, बस उसी मनोस्थिती में लिखी उनकी कविता आपसे शेयर कर रही हूँ


….

आसमान में उड़ते हुए वो “गिद्ध ”
बार बार नीचे देखते हैं
इस इंतज़ार में
कि कब मैं अपनी लड़ाई में लहू लुहान हो कर गिरूँ
कि कब मैं हौसला तोड़ कर , सांसें छोड़ दूं
और उनके भूखे पेट भरूँ

खिडकियों के आधे खुले परदों से
कुछ ‘डरे हुए ’..
मौत से पहले ही ‘मरे हुए ’..लोग
लगातार ‘इस अजीब सी लड़ाई का मज़ा ले रहे हैं ’
और मुन्तज़िर हैं , उस पल के
जब ‘एक बार फिर सच का हौसला झूट के गिद्धों के खौफनाक डैनों में फड-फड़ायेगा
और ‘कल के अखबार की एक सनसनी खेज़ खबर बन जाएगा ’.

पत्रकार मोबाइल पर हैं
चैनल के फोटोग्राफर अपने अपने कैमरा सेट कर के
सतर्क हैं ..
इन सब के लिए ‘खबर ’ तब बनूँगा मैं
जब ‘गिद्ध ’ मुझे नोच कर खा चुके होंगे
और सुकून से भरे अपने पेटों को ले कर जा चुके होंगे
……
कितना अजीब है
मैं सच को जिंदा रखने के लिए जीना चाहता हूँ
ताकि झूठ से लड़ सकूं
और ‘ये ’..इस इंतज़ार में हैं कि मैं गिरूँ ,टूटूं ,बिखर जाऊं
उन्हें ‘एक अच्छी खबर देने के लिए मर जाऊं
‘गिद्धों से समझौता है उन सबका ’
जहाँ गिद्धों की हुकूमत हो
उस देश का कुछ नहीं हो सकता …………………………

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कवि के द्वारा बहुत व्यथित मन से पूछे गए कुछ सवाल : आप इनमें से कौन हैं?

1.खामोश तमाशा देखने वाले
2.गिद्धों के खिलाफ लड़ने वाला ‘बेवकूफ !’ आदमी ….
3.सच की लाश को बेच कर दौलत और शोहरत हासिल करने वाले पत्रकार /नेता /टीवी जर्नलिस्ट …या
3.गिद्ध .

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