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प्रशांत जी की एक और सशक्त कविता

hindi kavita........ (Meri kuch pasandeeda kavitaayein)
hindi kavita........ (Meri kuch pasandeeda kavitaayein)
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प्रशांत जी नें इस कविता में उस व्यक्ति की मनोस्थिती का वर्णन किया है जो दंगों के दौरान दंगाईयों के झुण्ड की चपेट में आ जाता है , आईये जानें क्या होता है उसके बाद ……
….
…..

उनका एक जत्था था और मैं अकेला और निहत्था
उनका लक्ष्य था मुझे मिटाना , और मैं चाहता था
उनके आक्रमण से स्वयं को बचाना
इस प्रयास में मैं भागता
तो वो गोलबंद होकर मुझे नोच खाते
इसलिए मैं भागना स्तगित करके
उनका सामना करने की नीयत से अपनी समस्त इन्द्रियों को एकाग्र कर खड़ा रहा
उन्हें मेरा ये व्यवहार बड़ा अटपटा लगा…
वो मेरे चेहरे पर बेचारगी देखना चाहते थे…जो नहीं थी
वो मुझसे आशा कर रहे थे की मैं दया की याचना करूंगा …..जो मैंने नहीं की
क्योंकि मैं मरने से पहले, मरने को तैयार नहीं था ….
धीरे धीरे वो अनिर्णय की स्थिति में एक दूसरे को देखने लगे
किसी निर्णय के इंतज़ार में
जो कोई स्वयं नहीं लेना चाहता था
क्योंकि निर्णय के सही न होने का दोष हर कोई किसी और को देना चाहता था
धीरे धीरे उनके चेहरे उतर गए
और थोड़ी सी देर में वो मुझसे आँखें चुराते
बरसात के झूठे बादलों की तरह बिखर गए
मेरा अकेलापन फिर उनकी तथागथित एकजुटता से जीत गया था
मगर क्या मैं सच मुच अकेला हूँ
नहीं ….
मेरी सोच पर जो मेरा विश्वास है, वो मेरे साथ है …. और रहेगा
मेरी ताक़त …मेरा साथी बनकर सदा

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