hindi kavita........ (Meri kuch pasandeeda kavitaayein)
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जो जीने और होने के बीच का फर्क़ नही समझता
वो मुझे नहीं समझता
क्योंकि मेरे लिये जीना सिर्फ
साँसों के आने जाने को कहते हैं
और ये तो कोमा के मरीज़ में भी होता है,
जो जीते हुए भी नही जीता
और होते हुए भी नहीं होता
होना वक्त की सख्त ज़मीन पर
जीते जी अपने वजूद के निशाँ छोड़ना है
होना समय की तेज लहरों को
थोडा सा ही सही
किसी सार्थक दिशा में मोड़ना है
एक ऐसी दिशा में, जिसके क्षितिज पर
तुम्हारा नाम जड़ा हो
छोटा सा ही सही ,
मैं होना चाहता हूं,
उस समय भी,
जब मुझ में साँसों का ये सिलसिला टूट जाए
मैं होना चाहता हूं, उस सीमा के बाद भी
जहाँ मेरा शरीर पीछे छूट जाए …………
(प्रशांत वस्ल )
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